गलती हमने मान ली, पकड़ रहे हैं कान
कमरे में है कैमरा, थे इससे अन्जान
थे इससे अन्जान, नहीं तो कभी न लेते
पहले ही गोदाम तिजोरी, भरे हुए थे
ढूंढ रहे हैं काट, कैमरे की सब नेता
जाने कब किसे बनाए, मीडिया चहेता
नीरज त्रिपाठी
गलती हमने मान ली, पकड़ रहे हैं कान
कमरे में है कैमरा, थे इससे अन्जान
थे इससे अन्जान, नहीं तो कभी न लेते
पहले ही गोदाम तिजोरी, भरे हुए थे
ढूंढ रहे हैं काट, कैमरे की सब नेता
जाने कब किसे बनाए, मीडिया चहेता
नीरज त्रिपाठी
नीरज जी ,
नमस्कार !
क्या बात है … ब्लॉग की तमाम रचनाएं दिल चुरा रही है जनाब !
छंद में रचना … और , अच्छा रच देना हर किसी के भाग्य में कहां होता है !
आप पर सरस्वती की कृपा द्विगुणित होती रहे …
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
– राजेन्द्र स्वर्णका
राजेंद्र जी,
हार्दिक आभारी हूँ आपका इस प्रोत्साहन के लिए।
छंद में लिखना सीख रहा हूँ, आपको अच्छा लगा जानकर बहुत खुशी हुई। कुछ कमी लगे तो भी बताइएगा
सधन्यवाद,
नीरज
Bhai aapki rachna ka bihangabloknoprant ,jab singhablokan kiya to bada acha, laga aap par ma saraswati ke kripa purtya ho gai he.