करते करते काम कभी गर तुम थक जाओ
कार्यालय में कुर्सी पर चौड़े हो जाओ
ऐसे सोओ सहकर्मी भी जान न पाएँ
रहे ध्यान ऑफिस में न खर्राटे आयें
ऐसे लो जम्हाई कि दूजे भी अलसाएं
मैनेजर की फटकारें लोरी बन जाएँ
चिंतन की मुद्रा में नींद का झोंका मारो
मीटिंग में मौका पाते ही चौका मारो
ऐसा हो अभ्यास बैठे बैठे सो जाओ
कुंभकरण को तुम अपना आदर्श बनाओ
दो कुरसियां मिलाए के लेओ पैर पसार
मीठी अपनी नींद है इसका मजा अपार
नीरज त्रिपाठी
बढ़िया है।
किसी ने एस एम एस किया था…
बने रहो लुल,वेतन लो फुल।
धन्यवाद देवेंद्र जी,
ऐसा ही कुछ हमने भी पढ़ा था कहीं… ‘बने रहो येड़ा खाते रहो पेड़ा’ 🙂